Class 7 Hindi हिन्दी पाठ 8 रहीम के दोहे व्याख्या

 Class 7 Hindi हिन्दी

पाठ 8 रहीम के दोहे 

व्याख्या

दोहा 

1. कहि रहीम संपति सगे , बनत बहुत बहु रीति।
    बिपति कसौटी जे कसे , सोई सांचे मीत॥

दोहे का अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते हैं कि हमारे सगे संबंधी किसी संपत्ति की तरह होते हैं , क्योंकि संपत्ति भी बहुत कठिन परिश्रम से इकट्ठी की जाती है और सगे संबंधी भी बहुत सारे रीति रिवाजों के बाद बनते हैं। परंतु जो व्यक्ति मुसीबत में आपकी सहायता करता है या आपके काम आता है , वही आपका सच्चा मित्र होता है।

भावार्थ  सच्चा मित्र वही है जो मुसीबत में आपका साथ छोड़े।


दोहा 

2. जाल परे जल जात बहि , तजि मीनन को मोह।
   ‘
रहिमन मछरी नीर को तऊ छाँड़ति छोह॥

दोहे का अर्थ – इस दोहे में रहीम जी ने एक तरफा प्रेम का वर्णन किया है। रहीम जी के अनुसार , जब किसी नदी में मछली को पकड़ने के लिए जाल डालकर बाहर निकाला जाता है , तो नदी का जल तो उसी समय जाल से बाहर निकल जाता है। उसे मछली से कोई प्रेम नहीं होता इसलिए वह मछली को त्याग देता है। परन्तु , मछली पानी के प्रेम को भूल नहीं पाती है और उसी के वियोग में प्राण त्याग देती है।

भावार्थ  सच्चा प्रेम वही है जो किसी भी स्थिति में आपका त्याग करे और अंत तक आपके लिए ही जिए और आपके बिना प्राण तक त्याग दे।


दोहा 

3. तरुवर फल नहिं खात है , सरवर पियहि पान।
   कहि रहीम पर काज हित , संपति सँचहि सुजान॥

दोहे का अर्थ – अपने इस दोहे में रहीम जी कहते है कि जिस प्रकार वृक्ष अपने फल खुद नहीं खाते और नदी , तालाब अपना पानी कभी स्वयं नहीं पीते। ठीक उसी प्रकार , सज्जन और अच्छे व्यक्ति अपने द्वारा इकठ्ठे किए गए धन का उपयोग केवल अपने हित के लिए प्रयोग नहीं करते , वो उस धन का दूसरों के भले के लिए भी प्रयोग करते हैं।

भावार्थ  हमें अपनी धन सम्पति का प्रयोग केवल अपने लिए ही नहीं बल्कि समाज के कल्याण के लिए भी करना चाहिए। तभी समाज का चहुमुखी विकास संभव है।


दोहा 

4. थोथे बादर क्वार के , ज्यों रहीम घहरात
   धनी पुरुष निर्धन भये , करैं पाछिली बात

दोहे का अर्थ – इस दोहे में रहीम जी कहते है कि जिस प्रकार बारिश और सर्दी के बीच के समय यानि अश्विन महीने में बादल केवल गरजते हैं , बरसते नहीं हैं। उसी प्रकार , कंगाल होने के बाद अमीर व्यक्ति अपने पिछले समय की बड़ी बड़ी बातें करते रहते हैं , जिनका कोई मूल्य नहीं होता है।

भावार्थ – सही समय पर किए गए काम का बाद में कोई मूल्य नहीं होता।


दोहा 

5. धरती की सी रीत है , सीत घाम मेह
   जैसी परे सो सहि रहै , त्यों रहीम यह देह॥

दोहे का अर्थ – रहीम जी ने अपने इस दोहे में मनुष्य के शरीर की सहनशीलता का वर्णन किया है। वो कहते हैं कि मनुष्य के शरीर की सहनशक्ति बिल्कुल इस धरती के समान ही है। जिस तरह धरती सर्दी , गर्मी , बरसात आदि सभी मौसम झेल लेती है , ठीक उसी तरह हमारा शरीर भी जीवन के सुख दुख रूपी हर कष्ट , विपत्ति के मौसम को सहन कर लेता है।

भावार्थ  हमें जीवन की किसी भी विपत्ति या मुसीबत से डरना नहीं चाहिए क्योंकि जिस तरह भगवान् ने प्रकृति को हर कष्ट से उभारना सिखाया है उसी प्रकार भगवान् ने जब हमें बनाया तो हमें भी सभी कष्टों को झेलने की शक्ति के साथ बनाया है अतः खुद को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए। 

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